Hi Friends! यह है Birsa Munda Biography in Hindi के बारे में एक डिटेल लेख. बिरसा मुंडा भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाले जनजातीय/ आदिवासी क्रांतिकारी थे. उन्हें अदिवासी समाज के लोग ‘बिरसा भगवान’ के नाम से जानते हैं.
अंग्रेजों के द्वारा हो रहे आदिवासियों के शोषण को दूर करने के लिए बिरसा मुंडा ने जनजातीय को अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किए थे.
इस तरह से उन्होंने अंग्रेजों के शोषण का दमन किया, इसलिए बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज के लोग आज भी ‘ बिरसा भगवान’ के नाम से पूजते हैं.
तो आज मैं आप सभी को Birsa Munda Par Nibandh बताने जा रही हूँ. अगर आप भी Birsa Munda ki Jivani जानना चाहते हैं, तो आप यह आर्टिकल Birsa Munda Biography in Hindi अंत तक जरुर पढ़ें.
Birsa Munda ki Jivani
फ्रेंड्स, सबसे पहले हम बात करेंगे Birsa Munda ka Janm के बारे में. बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में छोटानागपुर प्रमंडल के झारखण्ड राज्य की राजधानी रांची,उलीहातू के मुंडा परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम ‘सुगना मुंडा’ और माता का नाम ‘करमी हातू’ था.
बिरसा मुंडा बहुत गरीब परिवार के थे, रोजगार की तलाश में उनका परिवार एक जगह से दूसरे जगह काम करने के लिए जाते रहते थे.
कुछ समय बाद जब वे बड़े हो गए, तभी बिरसा मुंडा को भेड चराने जाना पड़ता था. भेड चराते समय वह बांसुरी बजाते थे, क्योंकि उन्हें बांसुरी बजाना अत्यधिक पसंद था.
Birsa Munda par Nibandh in Hindi
अब हम बात करेंगे कि बिरसा मुंडा की शिक्षा कैसे हुई? गरीबी के कारण बिरसा मुंडा को मामा के घर में रहने के लिए भेजा गया. दो साल तक वह मामा के यहाँ रहे और स्कूल भी जाते थे.
उसके बाद की प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने साल्गा गाँव में पूरी की और आगे की पढाई करने के लिए वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल चले गए.
पढाई के समय इनका ध्यान हमेशा समाज की सुधार पर रहता था. क्योंकि उस समय ब्रिटिश सरकार द्वारा आदिवासी समाज के मुंडा लोगों का शोषण हो रहा था.
ब्रिटिश सरकार आदिवासियों को इसाई धर्म मानने के लिए प्रताड़ित/ शोषण कर रहे थे. इसी कारण उनका ध्यान समाज पर रहता था, और अंत में वे पढाई छोड़ दिए.
Birsa Munda Biography in Hindi
बिरसा मुंडा की जीवनी, प्रारंभिक जीवन के बारे में आप जान गए होंगे. अब उनका समाज सेवा योगदान के बारे में बात करेंगे.
बिरसा मुंडा ने आदिवासी लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति के लिए एक आन्दोलन का नेतृत्त्व किया. मुंडा के नेतृत्व में लोगों ने आन्दोलन में भाग लिए.
अंग्रेजों से मुक्ति पाने में बिरसा मुंडा जी को 1875 में आदिवासी लोगों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 वर्ष की सजा मिल गयी.
एक वर्ष छोटानागपुर में मानसून नहीं के बराबर हुआ, जिसके कारण भयंकर अकाल और महामारी फैल गयी. तभी बिरसा ने अपने समाज के लोगों की सेवा की.
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Birsa Munda ke Bare me Nibandh
बिरसा मुंडा ने अपने देश वासियों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ बहुत से विद्रोह का नेतृत्त्व किये.
मुंडा विद्रोह का नेतृत्व
एक नेता की तरह बिरसा मुंडा ने 1 अक्टूबर1894 को सभी मुंडाओं को एकत्र करके अंग्रेजों से लगान/टैक्स माफी के लिए आन्दोलन किया.
आन्दोलन का नेतृत्व करने के कारण तथा आम लोगों की मदद करने के कारण उन्हें 1895 में गिरफ्तार कर लिया गया और दो साल की सजा सुनाई गयी.
उसके बाद हजारीबाग के केन्द्रीय कारागार में बिरसा मुंडा को कैद कर दिया गया. बिरसा के जेल में रहने के बावजूद भी उनके साथियों ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने अकाल से पीड़ित जनता की सेवा की.
इसी कारण उन्हें अपने कुछ दिनों के जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा मिला. तभी से उस इलाके के लोग बिरसा मुंडा को ‘धरती आबा’ के नाम से पुकारने लगे और उन्हें भगवान की तरह पूजने लगे. उनके प्रभाव के कारण ही पुरे गाँव के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जाग गयी.
बिरसा मुंडा का अंग्रेजों के साथ विद्रोह
अंग्रेजों और मुंडाओं के बीच 1897 से 1900 तक युद्ध होते रहे. बिरसा मुंडा और उनको चाहने वालों ने अंग्रेजों से युद्ध करने में पीछे नहीं हटे. मुंडाओं ने अंग्रेज सिपाहियों के नाक में दम कर रखा था.
बिरसा मुंडा और उनके 400 सिपाहियों ने अगस्त 1897 को तीर कमानों से साथ खूंटी थाने पर घावा बोला.उसके बाद 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिंडत अंग्रेजों से हुई.
इस युद्ध में तो पहले अंग्रेज सेना हार गयी, लेकिन बाद में युद्ध में विजय के बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.
बिरसा मुंडा अपनी एक सभा को संबोधित कर रहे थे, उसी दिन जनवरी 1900 को फिर डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ. इस युद्ध में सभा में शामिल बहुत से औरतें और बच्चे मारे गए थे.
अंग्रेज सरकार ने विद्रोह का दमन करने के लिए बिरसा के कुछ शिष्यों को गिरफ्तार कर लिया. उसके बाद बिरसा मुंडा को भी 3 मार्च 1900 को चधरपुक्रर में गिरफ्तार कर लिया गया.
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बिरसा मुंडा के जीवन का अंतिम सफर
ब्रिटिश सरकार के गिरफ्तारी के बाद बिरसा मुंडा ने अपनी अंतिम साँस 9 जून 1900 को रांची के कारगार में लिए और उनकी मौत रहस्यमयी तरीके से जेल में ही हो गयी.
और अंग्रेज सरकार ने मौत का कारण ‘हैजा’ बताया, जबकि उनमें हैजा की बीमारी का कोई लक्षण नहीं थे.
25 वर्ष की उम्र में ही बिरसा मुंडा ने ऐसा काम कर दिखाया, जिसके कारण आज भी झारखण्ड, बिहार और उड़ीसा के आदिवासी लोग उनको याद करते हैं.
बिरसा मुंडा की समाधि स्थल रांची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है. समाधि स्थल में उनका स्टेच्यु भी लगा है.
उनकी याद में रांची में कई संस्थान खोले गए जैसे, बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारगार, बिरसा मुंडा कृषि विश्वविद्यालय, बिरसा मुंडा एयरपोर्ट, बिरसा मुंडा जैविक उद्यान, (औरमांझी) रांची.
Conclusion: Birsa Munda par Nibandh in Hindi
तो फ्रेंड्स, बस यही है Birsa Munda Biography in Hindi. मुझे आशा है कि आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा होगा. और अब आपको अच्छे से भी समझ में आ आया होगा बिरसा मुंडा की जीवनी के बारे में.
इससे सम्बंधित अगर आपके मन में किसी भी तरह का कोई भी सवाल हो तो, आप हमें निचे Comment कर जरुर बताएं. अगर आप इसी तरह के और भी Biography Blogs in Hindi पढ़ना चाहते हैं, तो आप हमें follow कर सकते हैं.
अभी के लिए इतना ही, जल्द ही मिलेंगे किसी नए topic के साथ. Keep Reading… Keep Growing…
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